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बिना मिलन के प्यार व्यर्थ है

बिना मिलन के प्यार व्यर्थ है।

प्यार हुआ पर मिलन नहीं है, कैसे नैया पार लगेगी।
नहीं मिलन की आस शेष है, प्राण शक्ति अब छोड़ भगेगी।
तड़प तड़प कर मर जाना है, ऐसा ही मन बोल रहा है।
मरने के कगार पर इच्छा, चक्र सुदर्शन डोल रहा है।
मन काया सब शिथिल हो रहे, दिल हंसने के बदले रोता।
मस्ती लेता सारा जग है, किंतु अधम यह दीदा खोता।
झूठे वादे सब करते हैं, सच्चा साथी यहां नहीं है।
बड़ी बड़ी सब बातें होती, नहीं हमसफर यहां कहीं है।
मतलब से नाता है सबका, परमारथ का अब संकट है।
कोई नहीं यहां है अपना, दुनिया लगती बहुत विकट है।
राह काट सब आगे बढ़ते, प्रेम पुजारी यहां न मिलते।
प्रीति सुधा रस पान कराते, मानव  मोहक यहां न दिखते।
बिना मिले हर प्यार व्यर्थ है, चित्त बहूत यह घायल हैं।
धोखा देती सिर्फ यहां पर,रुन झुन बजती पायल है।

साहित्यकार: डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी

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